पुस्तक समीक्षा
- पुस्तक का नाम : गुनाहों की देवता
- लेखक : धर्मवीर भारती
- प्रकाशक; Bharatiya Jnanpith
गुनाहों का देवता उपन्यास है, जो की लेखक धर्मवीर भारती द्वारा लिखा गया है। धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे। कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना, अनुवाद, नाटक, आदि विधाओं में उनको महारत हासिल थी, बाल्यावस्था में पिता की मृत्यु इलाहाबाद की संस्कार से बचपन से ही परिपक्व हो गए थे।
गुनाहों का देवता उपन्यास में मुख्य भूमिका के रूप में चंदर और सुधा है। इनका आध्यामिक प्रेम इस उपन्यास को पढ़ने के दौरान आप अनेक बार अपने भावनाओं को रोक नहीं पाएंगे। सुधा और चंदर का आध्यात्मिक प्रेम आपको अलग ही दुनिया में लेकर जाएगी। आज के समय के मांसल प्रेम के दुनिया से अलग है, चंदर और सुधा का भावात्मक लगाव। सुधा चंदर को देवता मानती है। और देवता मानकर चंदर की उपासना करती है,
इस पुस्तक को प्रेम की गहराइयों को समझने के लिए पढ़ना चाहिए।
गुनाहों का देवता; चरित्र चित्रण
धर्मवीर भारती के गुनाहों की देवता के साथ साथ अनेक कालजयी रचना की है, जैसे; गुनाहों का देवता(1949), सूरज का सातवां घोड़ा (1952), अंधा युग (1953, नाटक) आदि। इस उपन्यास के चरित्र चित्रण की बात करे तो मिस्टर कपूर ( घर की मुखिया), सुधा( बेटी), चंदर (घर का सदस्य नहीं होते हुए भी घर का अहम सदस्य), बिनती, गेसू, पम्मी, मिस डिक्रूज, प्रमिला डिक्रूज, कामनी, प्रभा, मिस उमलाकर, बिसरिया कैलाश (सुधा का पति)
गुनाहों के देवता पुस्तक का संक्षिप्त विवरण;
यह कहानी शुरू होती है, इलाहाबाद के तंग गलियों से। नन्ही दुबली- पतली रंगीन चंद्रकिरण सी सुधा। जब आज से वर्षो पहले यह सातवी पास करके अपनी बुआ के पास से यहां आई थी तब से लेकर आज तक कैसे वह चंदर की अपनी होती गई थी, इसे चंदर खुद नहीं जानता था। चंदर पर सुधा को गर्व होता है। एक कही दूर का लड़का काम और पढ़ाई के सिलसिले में डॉक्टर कपूर के यहां रहता था। और धीरे धीरे अपने मधुर व्योहार से घर का अहम सदस्य हो जाता है।
धीरे धीरे सुधा चंदर को अपना देवता मान बैठती है। सुधा चंदर की उपासना करती थी। पिता जी से ज्यादा तवज्जो देती है। कही भी जाती है, तो अपने भगवान (चंदर) से पूछकर कार्य करती है। लेकिन सुधा हमेशा इनकार करती है,की उसने चंदर से प्यार किया है, सुधा कहती है, की उसने जो कुछ दिया है, वह प्यार से कही ज्यादा ऊंचा और प्यार से कही ज्यादा महान है।
सब कुछ सही चल रहा था डॉक्टर कपूर के परिवार में लेकिन कहानी में मोड़ तब आती है, जब डॉक्टर कपूर सुधा की ब्याह की बात होती है। सुधा को ब्याह की बात सुनते ही, सुधा को लगता है, की उसकी दुनिया उजड़ गई। सुधा को लगता था की वह कभी विवाह नहीं करेगी और पापा को समझा लेगी लेकिन सुधा पापा से जीतकर भी अपने देवता से हार जाती है। विवाह तो एक न एक दिन होना ही था। विवाह से सभी लोग खुश थे सिर्फ एक प्राणी था जिसकी सांस धीरे धीरे डूब रही थी, जिसकी आंखों की चमक धीरे-धीरे कुम्हला रही थी, जिसकी चंचलता ने उसके नजरो से विदा मांग ली थी, वह थी सुधा।
और इस तरह दिन बीत रहे थे। शादी नजदीक आती जा रही थी और सभी का सहारा एक दूसरे का सहारा एक दूसरे से छूटता जा रहा था। सुधा के मन पर जो कुछ भी धीरे-धीरे मरघट की उदासी की तरह बैठता जा रहा था और चंदर अपने प्यार से, अपनी मुस्कानों से, लेकिन यह जिंदगी है, यहां प्यार हार जाता है, मुस्काने हार जाती है, आंसू हार जाती है, और सज्जा समान जीत जाती है।
इस तरह सुधा की शादी मिस्टर कैलाश से हो जाता है। चंदर न चाहते हुए भी सुधा को विदा करना पड़ता है। सुधा का सब कुछ लूट चुका है। न केवल प्यार और जिंदगी लूटी है, वरना वैभव भी लूट गया और याचना भी। सुधा का विवाह के बाद पत्रों का दौर चलता रहा। शुरू में सुधा द्वारा बराबर पत्र भेजा जाता था। लेकिन कुछ समय से सुधा द्वार पत्र नहीं भेजा गया। पत्र नहीं आने से चंदर नाराज होने लगा। कुछ समय बाद वापस सुधा आई
लेकिन वह चंदर की सुधा नही थी। सुधा का शरीर आधा हो गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। शायद चंदर सोचा था की सुधा सचमुच सुहागिन हो गई थी। लेकिन ऐसी बात नहीं थी। सुधा आज भी वही थी, शायद चंदर के जैसा स्वर्ग वह ससुराल में नही मिला।
क्यों पढ़ना चाहिए यह उपन्यास
इस उपन्यास को महान लेखक द्वारा 1949 में लिखा गया था। इस पुस्तक का लगभग 80 से ज्यादा संस्करण आ चुका है। यह उपन्यास जब लिखा गया था उससे ज्यादा प्रासंगिक आज के दौर में है। आज के इस सेक्स टॉय के युग में सुधा और चंदर की महान प्रेम की ज्यादा जरूरत है। चंदर और सुधा के प्रेम में बहुत शक्ति है, शायद शारीरिक सुख से कही ज्यादा। सुधा चंदर को देवता मान कर उपासना करती है, इससे ज्यादा प्रेम की ऊंचाइयां क्या हो सकती है, मुझे नहीं पता। शारीरिक प्रेम से भी महान कोई प्रेम होता है। यह सुधा और चंदर ने साबित करके दिखाया | मैं इस उपन्यास को 10 में से 9 स्टार रेटिंग्स देता हूँ|
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